Soyabean Farming : सोयाबीन की खेती करके किसान भाई बंपर मुनाफा पा सकते हैं. सोयाबीन में कई गुण होते हैं इसलिए इसे गोल्डन बीन भी कहा जाता है। पूर्वी भारत की भूमि और जलवायु सोयाबीन की खेती के लिए अच्छी मानी जाती है। लेकिन इसकी खेती से अच्छा उत्पादन पाने के लिए जरूरी है कि बुआई से लेकर कटाई तक का सारा काम पूरी सावधानी से किया जाए. आइए जानते हैं कि आप कैसे बेहतर तरीके से सोयाबीन की खेती कर सकते हैं।
सोयाबीन एक प्रमुख तिलहन फसल है, इसलिए अधिक उपज प्राप्त करने के लिए इसकी खेती उन्नत किस्म के बीजों के साथ करनी चाहिए। प्रमाणित कंपनी से और उच्च गुणवत्ता वाले बीज खरीदते समय सावधानी बरतें, ताकि बाद में उर्वरकों और कीड़ों और बीमारियों की संभावना कम हो जाए। अच्छे बीज से लागत कम होती है और मुनाफा दोगुना होता है। खेत या नर्सरी में बीज बोने से पहले उनका बीज उपचार करना चाहिए, जिसमें सफाई, धुलाई और रसायनों से उपचार शामिल है। ऐसा बुआई से 24 घंटे पहले ही करें, ताकि बीज जल्दी अंकुरित हो सकें। इसे पौध संरक्षण की प्रारंभिक अवस्था कहा जाता है।
बुवाई
खरीफ सीजन में सोयाबीन की बुआई पूरी तरह से बारिश पर निर्भर करती है. इसलिए मौसम विभाग की सलाह पर नजर रखें और सही सलाह मिलते ही बुआई शुरू कर दें. विशेषज्ञों का कहना है कि 4 इंच से ज्यादा बारिश होने पर ही सोयाबीन की बुआई अच्छी तरह से अंकुरित हो सकती है।
निराई-गुड़ाई करना
सोयाबीन की बुआई के बाद फसल की निराई-गुड़ाई करना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे खरपतवार जैसे हानिकारक पौधे मर सकते हैं। ये खरपतवार सोयाबीन के पौधों के बीच छिपकर उनका सारा पोषण खा जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार 20 प्रतिशत तक कम हो जाती है। इनके उपचार में डॉक्टरों की सलाह के अनुसार रासायनिक औषधियों का भी प्रयोग करना चाहिए। निराई-गुड़ाई से पौधे की जड़ों को ऑक्सीजन मिलती है और फसल की वृद्धि तेज होती है।
रोग एवं संक्रमण नियंत्रण
ख़रीफ़ की फसलें मानसून में बोई जाती हैं, इसलिए उनमें कीड़ों और बीमारियों का खतरा रहता है। इसलिए यह जांच करते रहना जरूरी है कि फसल में रोग और कीट अपना घर तो नहीं बना रहे हैं. इसके लिए खेत पर नजर रखें. इनके नियंत्रण में जैविक कीटनाशकों का छिड़काव बेहतर है। फेरोमोन ट्रैप लगाने से कीड़े भी फसल से दूर रहते हैं.
कृषि पोषण प्रबंधन
खेत में खाद, उर्वरक और उर्वरक की आवश्यकता का भी ध्यान रखें. मृदा स्वास्थ्य कार्ड का उपयोग कर खेत में पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति करें। किसान चाहें तो सोयाबीन की फसल के लिए नीम और जीवामृत से बनी खाद का उपयोग कर सकते हैं.