gehu ki unnat kism : गेहूं पूसा तेजस की उन्नत खेती तकनीक: विशेषज्ञ टी.बी. जी जेपीएस और मार्गदर्शन। पूसा तेजस गेहूं की एक उन्नत और अनोखी किस्म है, जो किसानों को बेहतर उत्पादन और अधिक कमाई की क्षमता प्रदान करती है। इस लेख में हम पूसा तेजस गेहूं की खेती के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देंगे ताकि आप इस किस्म की सफल खेती कर सकें।
पूसा तेजस गेहूं की विशेषताएं
गेहूं की पूसा तेजस HI 8759 किस्म ने अपनी विशेषताओं के कारण कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। यह किस्म विशेष रूप से मध्य प्रदेश के किसानों के लिए उपयुक्त है और इसके बोए गए बीज से आप 55 से 75 क्विंटल तक उपज प्राप्त कर सकते हैं. इसकी खासियत यह है कि इसमें अच्छी गुणवत्ता का अनाज मिलता है और फसल 112 दिन में तैयार हो जाती है.
पूसा तेजस गेहूं की बुआई
पूसा तेजस गेहूं की बुआई विधि का सावधानीपूर्वक पालन करना चाहिए ताकि आपको बेहतर उपज मिल सके। इसकी बुआई मार्च माह में की जा सकती है तथा बोये जाने वाले बीज की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जा सकती है। बीजों को 20 सेमी की दूरी पर बोया जाता है और बाद में ढक्कन से ढक दिया जाता है। बीजों के बीच वर्गाकार दूरी होने से पौधों को प्रत्येक पौधे के लिए पर्याप्त जगह मिलती है।
उर्वरकों का उपयोग
गेहूं की उन्नत खेती के लिए उर्वरकों का सही प्रयोग आवश्यक है। खाद और उर्वरकों के सही अनुपात से पौधों का उचित विकास होगा और आपको बेहतर उपज मिलेगी। खरीफ की फसल के बाद खेत में 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देना चाहिए.
फसल की देखभाल
पूसा तेजस गेहूं (gehu ki unnat kism)की फसल की देखभाल बहुत महत्वपूर्ण है ताकि आप बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकें। समय-समय पर निगरानी रखें, खरपतवार प्रबंधन में सतर्क रहें, निराई-गुड़ाई का ध्यान रखें और कीट नियंत्रण और रोग प्रबंधन उपायों का पालन करें।
गेहूं उत्पादक राज्य
भारत में मुख्य रबी सीज़न में गेहूं की खेती की जाती है और पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश इसमें प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इन राज्यों में आप गेहूं की खेती करके बेहतर पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
गेहूं की खेती की समस्याओं के समाधान के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
बीज चयन: उपयुक्त बीज का चयन करें। ऐसे बीजों का प्रयोग करें जो गेहूं की उच्चतम उपज और गुणवत्ता देंगे।
बुआई का समय एवं विधि: समय पर बुआई करें तथा बुआई की दूरी सही ढंग से मापें। बुआई के समय बीज कितनी गहराई पर बोया गया है यह भी महत्वपूर्ण है।
खेत की तैयारी: खेत की उचित तैयारी करें, जैसे जुताई और खरपतवार प्रबंधन।
उर्वरक प्रबंधन: समय-समय पर उर्वरक डालें और खेत की मिट्टी की खाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करें।
जल प्रबंधन: सही जल प्रबंधन करें। समय पर पानी दें और अधिक पानी देने से बचने के लिए उपयुक्त जल अंतरण उपायों का उपयोग करें।
खरपतवार प्रबंधन: खरपतवारों के प्रति सतर्क रहें और उचित कीटनाशकों का प्रयोग करें।
रोग प्रबंधन: गेहूं के रोगों को नियंत्रित करने के लिए उचित कीटनाशकों का प्रयोग करें।
नियमित देखभाल: फसल की नियमित देखभाल करें, जैसे खरपतवार प्रबंधन, निराई और कीट संरक्षण।
तकनीकी उन्नति: नवीन तकनीकों का उपयोग करके गेहूं की खेती को उन्नत करें, जैसे बेहतर बीज का उपयोग करना, सिंचाई प्रणालियों को अद्यतन करना और बहुत कुछ।
विशेषज्ञ सलाह: स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लें और उनके मार्गदर्शन के अनुसार काम करें।