मच्छरों से छुटकारा पाने के लिए सॉफ्ट में कौन सा स्प्रे डालें वे अपनी फसलों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास भी कर रहे हैं. लेकिन फसलों को अच्छी बारिश नहीं मिलने से बीमारियों के प्रकोप से निजात पाना मुश्किल हो गया है।
मच्छरों से छुटकारा पाने के लिए सॉफ्ट में कौन सा स्प्रे डालें
फसल पर सफेद मक्खी के हमले को नियंत्रित करने के लिए पहले स्प्रे के रूप में नीम आधारित कीटनाशक जैसे निम्बिसिडिन 300 पीपीएम या सुरेश 1500 पीपीएम को 1.0 लीटर पानी में 150-200 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इसके अलावा जिन किसानों ने अपनी कपास की फसल में नीम आधारित कीटनाशकों का उपयोग किया है और अभी भी खेत में सफेद मक्खी और हरे तेले का प्रकोप दिखाई दे रहा है, तो वे किसान रोगोर 350 से 400 मिलीलीटर का 200 लीटर पानी में घोल तैयार कर सकते हैं. प्रति एकड़ छिड़काव करें।इसके अलावा किसान किसान डाइफेनथैयुरान (पोलो) नामक औषधि की 200 ग्राम मात्रा को प्रति सेकंड की दर से 200 लीटर पानी में घोलकर बना सकते हैं। पोलो औषधि के प्रयोग से पहले व प्रयोग करने के बाद खेत में प्रयोग की मात्रा की आवश्यकता होती है। यह सब प्रयोग करने से पहले किसान अपने क्षेत्र के कृषि विकास अधिकारी का क्षेत्र में निरीक्षण करवाकर सलाह अवश्य लें।
इधर… नमी बढ़ने से ग्वार पर सफेद मक्खी व हरे तेले का असर, कीट व रोगों की पहचान के बाद ही दवाओं का चयन करें।
पिछले कुछ दिनों से मौसम में नमी बढ़ने से हरे तेले और सफेद मक्खी का हमला शुरू हो गया है। इसके साथ ही इस फसल पर बीमारियों का असर भी शुरू हो गया है. इस समय ग्वार की फसल में एज रॉट, पीलापन और बीमारियों का प्रकोप बढ़ने से किसानों की परेशानियां बढ़ने लगी हैं.
दवा खरीदते समय इन बातों का रखें ध्यान
किसानों को सलाह दी जाती है कि विक्रेता से दवा खरीदते समय पक्का बिल अवश्य लें तथा दवा की शीशी पर एक्सपायरी डेट अवश्य देख लें तथा बिल कटवाते समय बिल में दवा का बैच नंबर अवश्य अंकित कर लें। शिविर में मौजूद 58 किसानों को सैंपल के तौर पर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन पाउच दिए गए और स्प्रे के नुकसान से बचने के लिए प्रत्येक किसान को मास्क दिए गए।
सफेद मक्खी कपास की फसल में पीले शरीर और सफेद पंखों वाला एक छोटा, तेजी से उड़ने वाला कीट है। छोटे और हल्के होने के कारण ये कीड़े हवा के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से चले जाते हैं। इसके अंडाकार बच्चे पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसते रहते हैं। भूरे रंग की शिशु अवस्था पूरी होने के बाद यह वहीं प्यूपा में बदल जाता है। प्रभावित पौधे पीले एवं तैलीय दिखाई देते हैं।
जिस पर काली फफूंद लग जाती है. ये कीट न सिर्फ फसल का रस चूसकर उसे नुकसान पहुंचाते हैं। कपास की फसल में निचली पत्तियों का काला पड़ना खेत में सफेद मक्खी के लार्वा की उपस्थिति का संकेत देता है। मादा मक्खी अपने जीवनकाल में 40-100 तक अंडे देती है। जिसका रंग पीला होता है और पत्तियों की निचली सतह पर देता है। प्यूपा चरण 7-14 दिनों तक रहता है, वयस्क 8-14 दिनों में उभर आते हैं। कीट का जीवन चक्र 13-62 दिनों का होता है।
किसान भी अपनी फसलों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं. लेकिन फसलों को अच्छी बारिश नहीं मिलने से बीमारियों के प्रकोप से निजात पाना मुश्किल हो गया है। भिवानी और दादरी जिले में पहली बार रिकॉर्ड तोड़ 1,03,600 हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई है. अगस्त के पहले पखवाड़े तक कपास की फसल लहलहा रही थी। लेकिन अगस्त महीने में मानसून की बेरुखी कपास की फसल पर भारी पड़ने लगी.
सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण कपास की फसल की बढ़वार पूरी तरह से रुक गयी है. लेकिन इस बार मानसून की दगाबाजी के कारण कपास पर फिर से सफेद मक्खी का साया मंडराने लगा है.
सूखे के कारण फसलों में बढ़ रही बीमारियों को लेकर कृषि विभाग के आला अधिकारियों से लेकर कृषि विकास अधिकारी तक पूरी तत्परता के साथ किसानों के संपर्क में रहकर फसलों में लगने वाली बीमारियों की रोकथाम में लगे हुए हैं. सफेद मक्खी पर नियंत्रण के लिए किसान अंधाधुंध छिड़काव करने में लगे हुए हैं, जो कपास में मौजूद मित्र कीटों के लिए भी काफी हानिकारक है। कपास की फसल में मौजूद मित्र किट शत्रु कीटों को फसल को नुकसान पहुंचाने से रोकता है।